एक दिन घर में आंसू रह गए,
ढूंढे तो उसे आंखें ना मिली,
किसी से पूछें भला तो रिश्ते ना मिले,
फिर उस घर में अकेले ही थे आंसू,
आंखें और वो मालिक बाहर था,
फिर आंसू सोचें,
कि आंखों में था जिसके वो संभालें था,
जिस दिन उन आंखों से क्या निकला,
अपनी जिंदगी से बाहर हो गया,
जब मैं अकेला आंखों के बिना रो पडू,
तो वो भी तो किसी दिन अकेला रहा होगा,
कितना ही जिंदगी में रहा होगा,
कितना छूटा होगा उससे बहुत कुछ,
चुप रह कितना सहा होगा,
ये वो नहीं आंसू ने कहा,
वो एक दिन जीने को,
कितना ही मरता रहा होगा।।
- ललित दाधीच।।