जी हाँ।
मैं ही जल हूँ।
मैं ही आप सब की पहली जरूरत हूँ,
मुझ से ही हैं आप के लहलहाते खेत,
मेरे बिना जीवित रह नहीं सकता कोई भी दिन एक,
मैं ही आप का जीवन हूँ,
मैं ही आप का अंत,
मैं ही आदि हूँ, मैं ही अनंत,
मुझमें ना कोई रंग हैं, ना मेरा कोई आकार,
मुझमें ना कोई गंध हैं,ना मेरा कोई स्वाद,
जैसा मुझको रख़ोगे मैं वैसा हो जाऊँगा,
जितना मुझे सम्भालोंगे मैं उतना काम आऊँगा,
मगर तुम लोग मुझको व्यर्थ ही बहा रहे हो,
तुम सब मिल कर मुझको अस्वछ बना रहे हो,
हे तुच्छ इंसान इसमें मेरा कुछ नहीं जायेगा,
मैं नहीं रहा तो तेरा अस्तित्व ही मिट जायेगा,
इसलिए तुझे बचाने के लिए मैं तुझसे ही फ़रियाद करता हूँ,
मुझे व्यर्थ मत बहाओं मैं तुम्हारी ज़िंदगी आबाद करता हूँ।
जय हिंद।
जय भारत।
लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'