वह कराह रही थी ।
चीख रही चिल्ला रही थी।
हैवानों की झुंड ने उसे घेर रक्खा था।
हाय री अबला नारी तू नारी में क्यूं
जन्म ले रक्खा था , यही वो सोच रही होगी।
तू जगत जननी थी फिरभि तथाकथित मर्द
तुझे नोच रहें थे।
तेरे चिर को चीर दिया था जैसे..
मां भारती को जलील किया था।
लूटी थी तेरी अस्मत जैसे खुद को
नंगा कर रक्खा था , अब और क्या कहूं..
जलीमों ने जुल्मों से तुमको जकड़ रक्खा था।
तेरे अश्क इस बेदर्द ज़माने से कुछ सवालात पूछ रहें थे।
बूंद बूंद कर इस धारा पे तेरे रक्त गिर रहे थे।
तू फिरभि चुप मौन खड़ी थी।
अपनी ताक़त से भी ज्यादा लड़ी थी।
जैसे लाखो करोड़ों धधकती जलाएं की लपटें उठ रहीं थीं।
मानों पूरी सृष्टि दहक उठी थी।
चीखों से तेरी बहरों की नगरी गूंज उठी थी।
फिरभी ना आया कोई हाथ तेरे मदद को।
आज़ जो तेरी लाचारी को अपने
मोबाइल कैमरों में कैद कर रहे थे।
वो ये भूल गए कि आज़ तेरी बारी थी पर..
कल बारी तेरी नारी की भी होगी।
हार चुका होगा तू तब तक ...
बहुत देर हो चुकी होगी
बहुत देर हो चुकी होगी...

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




