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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

गाय माता -ताज मोहम्मद

कहनें को मैं दुनियाँ में कामधेनु कहलाती हूँ...
सुनो मनुस्यों मैं तुमको अपनी व्यथा सुनाती हूँ...

वैसे तो सब कहते है मुझको अपनी
गाय माता...
मैं इंसानों के घर मे रहती हूँ।
सब कुछ चुप चाप सहती हूँ।

एक तरफ,
तो तुम सब मुझको अपनी धर्म माता कहते हो।
दूसरी तरफ मेरा ही वध करके मुझको खाते हो।

ये कैसा...
तुम सब मुझसे सम्बन्ध रखते हो।
स्वार्थ वश मुझसे नाता गढतें हो।

दुनिया से कहते हो...
गाउ माता घर मे जब रहती है।
ईश्वर से...
सुख समृद्धि तब मिलती है।

हे, ईश्वर...

इंसान हो गया देखो कितना चालू...
मैं अपने बच्चों संग उनके भी बच्चे पालूं...

जब तक रहता मेरे स्तन में दूध।
मानव करता मेरी सेवा खूब।

मेरे दूध को बेचकर,
अपना घर भी वह चलाता है।
मेरे बछड़ों को वह,
निर्दयी कसाई से कटवाता है।

हे, ईश्वर...

मानवता के लिए तूने मुझे बनाया है।
तभी तो तूने सबसे मेरा रिश्ता माता का करवाया है।

स्वार्थ तो देखो अपने मानव का...
मुझको सदस्य ना माना घर का...

क्या लगवाई,
पाबन्दी सरकार ने मेरी बिक्री पर।
मानव ने सारे रिश्ते नाते तोड़े है,
मुझसे इस पर।


मेरे बछड़ो से मानव ने कितना काम
कराया है।
कमजोर होने पर उनको चुपचाप घर से अपने भगाया है।

हाँ इस सरकार ने...
हमको कुछ सुरक्षित करवाया है।
अपने पैसोँ से...
गाँव गाँव में गौशाला बनवाया है।

लेकिन...
मनुष्यों का लोभ तो देखो उसके ह्रदय में
क्या चलता है?
गौशाला का सरकारी पैसा भी उनमें आपस मे बटता है।

कागज पर ही,
सब कुछ बस साफ सुथरा रहता है।
गौशाला में मानव हमको गंदगी में ही,
रखता है।

जैसे जैसे मेरे दुग्ध के उत्पादन में कमी होती जाती है।
मनुष्यों के लिए मेरी यतार्था भी व्यर्थ होती जाती है।

मुझसे,
मनुष्यों का बस स्वार्थ का नाता है।
फिर भी वो मुझको मानता अपनी
माता है।

हे, ईश्वर...

तूने मुझको सुख समृद्धि का प्रतीक बनाया है।
पर मनुष्यों के मन में मोह माया का लोभ समाया है।।

मेरे मूत्र से मानव ने ना जानें कितनी औषधियाँ बनाई है।
फिर भी मेरी उपयोगिता ना उनको समझ मे आई है।।

कितनी कोमल कितनी सुंदर मैं सबको लगती थी
श्री कृष्ण की मुरली पर मैं कितना सम्मोहित रहती थी।

अब दूध से मेरे ना कोई घर में अपने माखन बनवाता है।
तभी तो,
कृष्णा भी ना अब कलयुग में आता है।

हे, ईश्वर...

मनुष्य कलयुग में कितना भरमाया है।
उसको आपका भी सम्बन्ध समझ ना आया है।

अब ईश्वर...
तेरी कलयुग की दुनियां में मुझको ना रहना है।
मानव से...
कह दो मुझको गाउ माता ना कहना है।

अब मनुष्यों से मेरा कहने का नाता है।
बस ऐसे ही मेरा नाम तो गाउ माता है।

ताज मोहम्मद
लखनऊ




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (5)

+

डॉ कृतिका सिंह said

कहने के लिए शब्द नहीं है मेरे पास 🤐🤐सच में मेरे आंसू आ गए 😭आपने बहुत-बहुत बहुत सुंदर लिखा है👏✍️✍️

ताज मोहम्मद replied

प्रतिक्रिया देने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

इस पर बोलने के लिए बहुत से शब्द हैं - और सिर्फ बोलना ही नहीं करने के लिए भी बहुत कुछ है लेकिन शब्दों को तो आपने सजा दिया - पशु पक्षी वृक्ष इन सबसे मानव का सिर्फ जैसा आपने कहा कहने का नाता रहा गया है - करनी और कथनी अब एक नहीं रही है - मुझे सच में ख़ुशी हुयी की मेरे अंतर्मन की व्यथा आपने कह डाली और इतने अच्छे ढंग से कही है कि बहुत चिंतित हूँ इस विषय को लेकर व्यथित हूँ - आशा करता हूँ आपकी इस रचना को पढ़ने के बाद लोगों के रवैये में जानवरों , पशु पक्षियों एवं पेड़ पौधों के प्रति चेतना जाग्रत होगी या कहीं न कहीं उनको सोचने और कचोटने पर मज़बूर करेगी - बहुत सुन्दर विषय वस्तु - बहुत सुन्दर रचना ताज साहब

ताज मोहम्मद replied

बस आप ही लोगों से सीख रहा हूं। ये प्रेम और स्नेह हमेशा मुझपर बनाए रखना भाई जी। धन्यवाद।

Raman Pratap said

Sach me nishbd hun

ताज मोहम्मद replied

आपको ह्रदय से धन्यवाद भाई जी।

Vineet Garg said

आप बहुत अच्छे कवि हैं अपने अपने गंभीर विषय को अपने शब्दों से इतने अच्छे से बयां किया सब सोचने पर मजबूर हैं कि हम सब कितने गलत हैं आप पर भगवान की ऐसी ही कृपा बनी रहे

ताज मोहम्मद replied

नहीं भाई जी मैं तो सही मायनों में कवि का अर्थ भी नहीं जानता हूं। बस आप लोगों से सीखकर कुछ लिखने की कोशिश कर लेता हूं। प्रतिक्रिया के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया भाई जी।

वेदव्यास मिश्र said

नि:शब्द हो गया हूँ आपकी सार्थक सोच और लेखनी देखकर ..नतमस्तक नमन आभार !! 🙏🙏

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