मैं रह भी जाऊँ तो क्या होगा?
तू फिर भी जाएगा — क्या होगा?
तेरे लिए जो मिटा था मैं,
अब वो भी मिट जाए — क्या होगा?
जिसकी क़समों में थी मेरी साँसें,
वो झूठ निकल जाए — क्या होगा?
मैंने जो दर्द छुपा रक्खा,
वो सबको दिख जाए — क्या होगा?
तू जिसकी नींदों में चैन से था,
वो नींदें उड़ जाए — क्या होगा?
मैं जो तुझमें बसा करता था,
अब तुझसे हट जाए — क्या होगा?
तू पूछे फिर से — “कहाँ गई वो?”
और जवाब मिल जाए — “क्या होगा?”
तू लौट के आए — मान लिया,
पर मैं ही ना पाऊँ — क्या होगा?
जिस दिल पे तेरा हक़ था कल,
अब पत्थर बन जाए — क्या होगा?
जो बातें मैंने सह ली थीं,
अब तू ही ना सहे — क्या होगा?
जिस रूह को तूने ठुकराया,
वो रूह भटक जाए — क्या होगा?
जो चुप मैं बरसों से हूँ,
वो लफ्ज़ बन जाए — क्या होगा?
जिस इश्क़ को तूने छोड़ा था,
वो आग बन जाए — क्या होगा?
मैं जो खड़ा हूँ खंडहर सा,
किसी दिन ढह जाऊँ — क्या होगा?