तेरी आँखों में झूठ भी था — और नमक भी,
मैं मीठी बातों से पिघलूँ? तू बह नहीं सकोगे।
तेरे वादों की क़ीमत थी — एक अधूरी रात,
मैं सौदे में बिक जाऊँ? तुम कह नहीं सकोगे।
तू इश्क़ की किताब लिए फिरता रहा शहर में,
मैं दर्द की जुबान हूँ, तू पढ़ नहीं सकोगे।
तू आदतन मासूम बन के आया था,
मैं हादसों की औरत हूँ, तू सह नहीं सकोगे।
तू हँस कर कहे — “मैं तेरे साथ हूँ हर मोड़ पर”,
मैं गिर चुकी हूँ बार-बार, तू रह नहीं सकोगे।
तेरे भीतर ख़ालीपन है — नकली देवता-सा,
मैं देवी नहीं हूँ बेवक़ूफ़, तू छल नहीं सकोगे।
तू हर बार मेरी चुप्पी को “ना” समझता रहा,
मैं “हाँ” भी करूँ — तो भी तू सह नहीं सकोगे।
मेरी आँखें आईना हैं — दिखा देती हैं सच,
तू देखेगा अगर ख़ुद को, तू रह नहीं सकोगे।
तू पूछे — “तू अब भी मुझसे मोहब्बत करती है?”
मैं हँस दूँ अगर — तो तुम वो भी सह नहीं सकोगे।