थोड़ा बहका था, मगर फिर सही हो गया..
ज़माने की तासीर में, जो था वही हो गया..।
दुनिया ने जब मुझसे, हकीकत बयां की तो..
शैतान से हाथ छुड़ाकर, मैं आदमी हो गया..।
लबों पे आकर जो ठहर गया, तिश्नगी का कारवां..
मैं जो दरिया न हो सका, तो फिर नदी हो गया..।
आपसे तो ताउम्र सुना न गया, दिल का अफ़साना..
और वो दो घड़ी के सफर में ही, हमनशीं हो गया..।
आपसे वफ़ा की उम्मीद, अब अब करें भी कैसे..
अब दिल पहले से भी जियादा वहमी हो गया..।
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




