लौटना चाहती हूँ वापस उसी दौर में।
जिस मोड़ पर पाया नजराना प्यार में।।
नाता तब भी था पर कोई वास्ता न था।
पिघल गई थीं मोम की तरह प्यार में।।
तुमने देखी थी शख्सियत गुलाब जैसी।
पन्नों के बीच में सम्हाले रखना प्यार में।।
प्यास जगी वक्त आकर बुझाये इसको।
मखमल में सिलवटें जैसी पडी प्यार में।।
संघर्ष से भागना नही चाहती फिर भी।
उसी दौर को 'उपदेश' चाहती प्यार में।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद