उनसे कितनी ख़्वाहिशें है हमे ये वो नहीं जानते हैं,
हम उन्हें अपना सबकुछ मान चुके पर वो हमे कहां
कुछ मानते हैं।
हम तो उन्हें भीड़ में भी ढूंढ लेते हैं,
पर वो तो हमे एक - दो में भी नहीं पहचानते हैं।
इतनी ग़ज़लें लिख दूं मैं उन पर कि कागज़
कम पड़ जाए,
लिखते-लिखते उनकी दास्तां स्याही भी कलम में
कम पड़ जाए।
और दिन - रात यही डर सताता है कि कहीं,
उनकी दास्तां लिखने में मेरा ये जीवन ना कम पड़ जाए।
खुल कर तो वो हमारे सवालों का जवाब देते नहीं पर
इशारों - इशारों में बहुत कुछ कह जाते हैं,
फिर हम भी उनकी बातों को समझ जाते हैं।
और फिर उनके इशारों में दिए जवाब और हमारे सवाल
को साथ में जोड़ कर,
जोर - जोर से हॅंसने लग जाते हैं।
हम उन पर फ़ना हो जाए,
ग़र वो हमे अपना बना जाए।
एक तरफ़ा प्यार में फ़क़त दर्द ही मिलता है,
कभी वो भी इस प्यार को दो तरफ़ा कर जाए।
🌼 रीना कुमारी प्रजापत 🌼
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




