मैंने हर शोर से दूर हटकर
एक साँस में तुझे सुना —
ना कोई आवाज़, ना कोई नाम,
फिर भी तू था…
जैसे सदियों से मेरी रूह के भीतर
कोई मौन ऋतु ठहर गई हो।
मैंने चाँद से उसकी ठंडक नहीं माँगी,
ना सूरज से उसका तेज़,
पर तुझसे —
तेरे भीतर बसे उस मौन को
हर रात माँगता रहा हूँ,
जो नींद से ज़्यादा मेरी आँखों को सुकून देता है।
तू कोई रूप नहीं,
ना कोई स्पर्श है,
तू वो एहसास है
जो मेरी रगों में बिना छुए बहता है।
तू कोई मन्नत नहीं —
बल्कि उस मन्नत का जवाब है
जो माँगी भी नहीं गई,
मगर कबूल हो गई।
हर बार जब मैं खुद से टकराता हूँ,
तेरा नाम
किसी हथेली की लकीर की तरह
मेरे वजूद में उभर आता है।
मैंने इश्क़ नहीं किया तुझसे,
इश्क़ तो आवाज़ें मांगता है —
मैंने तुझे स्वीकारा है,
जैसे आग अपनी राख को,
जैसे दरिया अपने तल को।
अब तुझे ढूँढ़ना
मेरे लिए असंभव है —
क्योंकि तू बाहर की कोई चीज़ नहीं रहा,
तू अब वो धड़कन है
जो मेरी रूह में ज़ोर से धड़कती है।
-इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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