New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.



The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|

The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

क्या समा है

कितनी आंधियां हैं ?
कितने तूफ़ान हैं ?
ऐसे में वो जगह खड़े हम जहां,
वो भी कितनी अनजान है ?

क्या हवा है ?
क्या समा है ?
ये जो है सामने मेरे मंज़र,
इसका क्या मज़ा है ?

हमारे माथे पर पानी की बूॅंदें हैं
और है सुरज भी,
दूर कहीं क्षितिज पर काले बादल हैं
और है इन्द्रधनुष भी।
जो भी है बड़ा सुहाना है,
गा रहा ये मौसम कोई गाना है।

इस इन्द्रधनुष के बीच बादल ऐसे सजे
मानो पहाड़ी से धारा बह रही हो।
और पास मेरे हवा की ऐसी सरगोशी
कि मानो वो मुझसे कुछ कह रही है।

लगता है आज ये मौसम भी
मेरे लिए ही बदला है,
लगता है आज ये बरसात भी
मेरे लिए ही हुई है।
इस अनजानी भीड़ में तन्हा ना समझूं मैं खुद को,
इसीलिए शायद आज ये हवा भी
मेरे लिए ही चली है।

आज उस इन्द्रधनुष को मैं
बिना पलकें झपकाए निहारे जा रही थी,
ऐसा लग रहा था मानो वो भी मुझे देख रहा हो।
आज बड़ी देर तक ठहरा वो अक्सर इतनी देर
ठहरता नहीं है,
मानो कि मुझसे दोस्ती करने की सोच रहा हो।

~ रीना कुमारी प्रजापत




समीक्षा छोड़ने के लिए कृपया पहले रजिस्टर या लॉगिन करें

रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

प्रणाम स्वीकार करें रीना Mam, बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति क्या कहने हैं नतमस्तक आपकी रचनात्मकता के सामने

रीना कुमारी प्रजापत replied

बहुत बहुत शुक्रिया भाई, ये तो आपका बड़प्पन है वरना रचनात्मकता में हमसे तो ज्यादा माहिर हैं आप

Lekhram Yadav said

अति सुन्दर रचना मेरा प्रणाम स्वीकार करें, मेरी प्यारी बहना

रीना कुमारी प्रजापत replied

शुक्रिया 🙏 प्रणाम,सुप्रभात

फ़िज़ा said

Bahut khoob bahut achha likha bahut hi pasand aayi aapki rachna

रीना कुमारी प्रजापत replied

शुक्रिया फिजा जी

कमलकांत घिरी said

हमें तो आपकी हर रचना बहुत पसंद आती है, आज भी कुछ ऐसा ही हुआ है बहुत सुंदर रचना है रीना दीदी, बहुत ख़ूब 🙌👏👏प्रणाम स्वीकार करें🙏, ।।शुभरात्रि।।

रीना कुमारी प्रजापत replied

प्रणाम 🙏 मन झूम उठा आपकी इतनी सुंदर प्रतिक्रिया पाकर

कविताएं - शायरी - ग़ज़ल श्रेणी में अन्य रचनाऐं




लिखन्तु डॉट कॉम देगा आपको और आपकी रचनाओं को एक नया मुकाम - आप कविता, ग़ज़ल, शायरी, श्लोक, संस्कृत गीत, वास्तविक कहानियां, काल्पनिक कहानियां, कॉमिक्स, हाइकू कविता इत्यादि को हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, इंग्लिश, सिंधी या अन्य किसी भाषा में भी likhantuofficial@gmail.com पर भेज सकते हैं।


लिखते रहिये, पढ़ते रहिये - लिखन्तु डॉट कॉम


© 2017 - 2025 लिखन्तु डॉट कॉम
Designed, Developed, Maintained & Powered By HTTPS://LETSWRITE.IN
Verified by:
Verified by Scam Adviser
   
Support Our Investors ABOUT US Feedback & Business रचना भेजें रजिस्टर लॉगिन