जाने कहां जायें मन
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जाने कहां जायें मन
ढूंढ। उसे लाये मन
रस्ते बहुत से पायें गर
समय की धूल में पटाये सब
असमंजस से घबरायें मन
कौन सा पग बढ़ाए मन
आहट उसकी हर पल आये
पर सामने पहचान न पाये मन
दौड़ उसकी और लपका जाये
न रस्ता न मंजिल पाये
लौट फिर पछताये मन
मंद बयार संदेशा लाये
इक भ्रम जाल बनायें
दुविधा में फंस जाये मन
जाने कहां जायें मन
ढूंढ उसे लाये मन
कभी खुशियों की चादर में
और कभी गम के आंचल में
रोज हिलोरें खाये मन
अपनी व्यथा किसे सुनाएं मन जाने कहां जायें मन
ढूंढ उसे लायें मन
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✍️#अर्पिता पांडेय