मन मुताबिक तो कभी बाजी नहीं मिलती
हर किसी को खुली आजादी नहीं मिलतीI
डूबकर बस जो नापते हैं जाम की गहराई
सांस कुछ मिलते हवा ताजी नही मिलतीI
कौन कहता है यहां पे झूठ हरदम हारता है
ढूंढने से भी मगर यहाँ सच्चाई नहीं मिलतीI
दास जीवन आदमी को मुफ्त ही देता खुदा
पर कभी ये नीयत की भरपाई नही मिलतीI
क्यूँ मोहब्बत भी यहाँ कातिल हुई है बेरहम
सोनम हुई जबसे सनम शहनाई नहीं मिलती II