चलो ना गाँव की वादी घूम आते हैं।
जहाँ रात में अक्सर जुगनू जगाते हैं।।
याद कर वही पुरानी दोपहर की धूप।
खेलने के बहाने थोड़ी मिट्टी लगाते हैं।।
कितने पसन्द थे खिलौने बनाए हुए।
उसी मिट्टी से फिर खिलौने बनाते हैं।।
गहरा रंग लगाकर जवान हो गए हम।
आँख मिचौली के दौर में लौट जाते हैं।।
पुराने चौक के करीब बरगद का पेड़।
उसी डाली पर 'उपदेश' झूला लगाते हैं।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद