कुछ इस कदर गिर चुका हूँ ना मंजिल ना सफ़र है,
दरबदर ढूंढता हूं ना जाने जिंदगी किधर है,
पल पल एक चुभन है... कहाँ आशा की किरण है,
कुछ इस कदर गिर चुका हूँ ना मंजिल ना सफ़र है,
यातनाऔं का दौर है परीक्षाओं की खड़ी है,
रुक सी गई बेचैन जिंदगी है,
पल पल तुझे सोचता हूँ क्यों तू मुझ पर हस रही है,
क्यों तू मुझ पर हस रही है,
जी लीये कई लम्हे अब तुझको जी रहा हूं,
क्यों तु मुझको बेइंतेहा दर्द दे रही है,
बे इंतेहा दर्द दे रही है,
कुछ इस कदर गिर चुका हूँ ना मंजिल ना सफ़र है,
ना मंजिल ना सफ़र है,
.......कवि राजू वर्मा.... यूट्यूब.. @rajukavi214
सर्वाधिकार अधीन है