खोल के बैठी है अब किताब जिन्दगी
ले रही है अपना अब हिसाब जिन्दगी
किसने दिया है क्या किसने लिया है क्या
अब ले रही है सब से ये हिसाब जिन्दगी
जबाब जिस सवाल का मिला नहीं कभी
अब दे रही है उसका भी जबाब जिन्दगी
कितने किए हैं पुण्य कितने किए हैं पाप
गिन-गिन के ले रही है हिसाब जिन्दगी
किसने किए हैं छल किसने दिए
हैं गम
न जाने देगी किसको ये खिताब
जिन्दगी
बांट दो तुम प्यार से अपनी हर
खुशी
कहती है आप सबसे जनाब जिन्दगी
कर्म कुछ अच्छे अब कर लिया करो
वर्ना सजा दे जाएगी बेहिसाब जिन्दगी
यादव ने कब कहा है तुम काम
न करो
बढ़ता है आगे काम से जनाब आदमी
लेखराम यादव
सर्वाधिकार अधीन है