"मज़दूर का दर्द"
मज़दूर की आँखों में जो ग़म बसा है,
वो न जाने किस दर्द में बसा है।
पसीने की हर बूँद में है एक कहानी,
उसकी मेहनत में बसी है चुप्पी की निशानी।
कभी टूटते हाथ, कभी बेज़ुबान पैर,
हर रोज़ की मेहनत में उसका सारा संसार है।
उसकी जिंदगी, मिट्टी और खून से सजी,
फिर भी वो खड़ा है, कभी न रुका, कभी न थमा।
दर्द में मुस्कान, थकान में हिम्मत,
हर क़दम उसकी तासीर है, उसी की ताकत।
घर के लिए, अपने सपनों के लिए,
वो चलता रहता है, चाहे कैसी भी हो राहें।
लेकिन कोई न देखता उसका ये संघर्ष,
जब तक वो चुप रहता है, सब उसे देखे बिना गुजर।
मज़दूर का दर्द सिर्फ़ उसका है,
लेकिन उसकी मेहनत से ही दुनिया खड़ी है।
- अभिषेक मिश्रा ( बलिया )