कसक मिलने की सुलझा न पायेगी।
मदद किससे लूँ तजवीज न आयेगी।।
याद होले-होले शोला बनती जा रही।
आँसू तो लायेगी मगर बुझा न पायेगी।।
बच्चे जैसे निराले खेल करने की चाह।
बढती जायेगी खुद सुलझा न पायेगी।।
उम्र वक्त के संग कितना सहयोग करे।
वक्त गया 'उपदेश' तो रिझा न पायेगी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद