आदमी ईश्वर से पहले
दो रोटी की दुआ करता है
फिर दो रोटी के साथ कपड़े
और घर की भी इच्छा करता है
यह होते ही रोटी के साथ
नए नये पकवान की इच्छा
एक मकान बनते ही और अच्छे
और बड़े मकान की इच्छा
फिर महल की आकांक्षा
कपड़ों में नित फैशन
नए ब्रांड की चाहत
साईकिल मिल गई तो
बाइक की चाहत
बाइक मिल गई तो
कार की चाहत
फिर सबसे महंगी सबसे अच्छी
और बड़ी कार की चाहत
आय शुरू हुई तो
असीम सम्पति और
कारू के खजाने की इच्छा
कहीं शराब की इच्छा
कहीं शवाब की इच्छा
कहीं कुर्सी तो
कहीं नाम की चाहत
कहीं सरकार की चाहत
कहीं अधिकार की चाहत
शोहरत पद दौलत मिली तो
अपनी सात पुश्तों के लिए
हर ऐशो आराम के
भरपूर इंतजाम की चाहत
सब कुछ पाने पर भी
हर समय बैचैनी
किसी दूसरे की सफलता से
जलकर दिल खाक खाक
जिसने पाला सबकुछ दिया
उस ईश्वर का कोई आभार तक नहीं
फिर ईश्वर और किस्मत
को हमेशा कोसने का काम
एक पल को ना शान्ति
और ना ही आराम
हर इंसान
पहले दो रोटी कपड़ा
और मकान मांगता है
फिर ईश्वर की सारी शक्ति
और विधान मांगता है
आखिर तक बैचैन रहता है
कभी खुश नहीं
यही तो बस
दो रोटी का कमाल है
आख़री सांस तक
जी का यही तो जंजाल है. .