आडम्बर के पट तो खोलों
रूंधे कंठों से कुछ तो बोलो
तेरा इक ही स्वर काफी है
तेरा इक ही स्वर काफी है
आजादी के बोल तो बोलों
आडम्बर के पट तो खोलों
बोलो मुख से कुछ तो बोलो
किसने तेरा मान हरा है
मन तेरे किसने छला है
तेरा सखा या तेरा सखा है
मौन रहो ना अब मौन रहो
उठ जागो कि तुम चंडी हो
उठ जागो कि तुम शक्ति हो
आडम्बर के पट तो खोलो
एक नहीं अनेक हो इस
धरा पर सृष्टि का स्वरूप हो
हे चंचला मौन तो तोड़ो
बोलो मुख से कुछ तो बोलो
आडम्बर के पट तो खोलों
रूंधे कंठों से कुछ तो बोलो
हे निर्भया दामिनी बन बरसो
बुझते शोलों में अग्नि तो घोलो
आडम्बर के पट तो खोलों
रूंधे कंठों से कुछ तो बोलो
✍️#अर्पिता पांडेय