शेर को मत ललकार
डॉ. एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
वन का राजा वो, अपनी ही शान में जीता,
मत ललकारो उसको, क्यों मौत को है रीता?
शांत स्वभाव है उसका, जब तक न छेड़ो तुम,
गर क्रोधित हो उठा, तो मिट जाएगा हर दम।
उसकी दहाड़ से काँपेगी ये धरती सारी,
उसके नखों की खरोंच, करेगी बेचारी।
मत बनो नादान, मत करो ये भूल भारी,
सोते हुए सिंह को ललकारना है ख़तरनाक भारी।
अपनी मस्ती में वो वन में विचरता है,
अपनी ही मर्ज़ी का मालिक बन फिरता है।
क्यों छेड़ना उस शक्ति को, जो है अपरंपार,
क्यों बुलाना मुसीबत को, क्यों करना बेकार?
उसकी एक हुंकार से मच जाएगा हाहाकार,
बचेगा न कोई प्राणी, न पाएगा कोई प्यार।
इसलिए ओ नादान मानव, समझ ले तू ये बात,
शेर से बैर करना, है अपनी ही मौत की दात।
रहने दो उसको अपनी ही दुनिया में खुश,
मत करो ऐसा कर्म, कि हो जाओ तुम बेवश।
उसकी गरिमा का करो सम्मान दूर से ही,
वरना पछताओगे तुम, रह जाओगे कहीं के नहीं।