शारदा सिन्हा -------एक संस्मरण
अभी-अभी हजारों दीप जलाकर हमने मांँ लक्ष्मी का स्वागत किया और अभी -अभी टेलीविज़न से पता चला हमने माँ सरस्वती के पर्याय शारदा सिन्हा को खो दिया, लगा एक जगमगाता दिया बुझ गया।
आपसे जुड़ी सारी यादें ताजा हो गई। रील की तरह आँखों के आगे सब घुम गया और मैं चली गई अपने कॉलेज के दिनों में जिस क्लास में आपसे पहली मुलाक़ात हुई मेरे बड़े होने पर। दरअसल, पहली मुलाक़ात बचपन में हुई थी जब मैं शायद दूसरे या तीसरे कक्षा में थी अपने एक रिश्तेदार के साथ (जो आपकी दोस्त थी)। जब आपके घर गई तो आप अपनी बेटी को खाना खिला रहीं थीं मगर वो रोने के क्रम में नहीं खा रही थी तब आपने मुझे मेरे निक नाम से संबोधन करते हुए कहा था कि खा लो नहीं तो सब 'च्यूइंगम' खा लेगी लेकिन मेरी उम्र ये समझने के काबिल नहीं थी कि मैं इतनी बड़ी गायिका से संबोधित हो रही हूँ ।इसीलिए मैं मानती हूं कि मेरी पहली मुलाक़ात तब हुई जब मैंने कॉलेज में दाख़िला लिया और आप मेरी शिक्षिका थी। फिर पांँच साल का साथ रहा आपसे हम सारी लड़कियों का। हमारा रोज़ का मिलना और गाना होता रहा।आज भी याद है कॉलेज के प्रोग्राम के लिए जो आपने कव्वाली सिखाई थी "चाय के सिंगल कप ने दीवाना बना डाला"; आपके अंदाज़ ने हमलोगों को दीवाना बना डाला था और 'कज़री' गाने के लिए (सावन के आइल महीनवा हे सखी गाव कज़रिया)जब हमलोगों का आपके बताए अनुसार हरी साड़ी पहन कर स्टेज पर आना हुआ था तब आपने कहा था — "तुम लोगों का तो अच्छा है; साड़ी बदल-बदल कर स्टेज पर आना और मैं एक हीं साड़ी में बैठी हूँ"। यह बोलकर आपका मुस्कुराना और हमलोगों का झेंपना आज भी रोमांचित करता है।
हमलोगों की हरी साड़ी और आपकी पीली साड़ी वाली वो तस्वीर आज भी एल्बम से निकालते हीं यादें ताजा कर देती हैं ।फिर कुछ सालों बाद फिल्म 'मैंने प्यार किया' में आपका गाना, 'कहे तो से सजना' आया तो आपने बहुत ख़ुश होकर कहा था मेरी 'सीडी' तुमलोग खरीद लेना। फिर कॉलेज छूटा, आप छूटीं और कुछ वक्त बाद मेरी नियुक्ति 'कर्पूरी फुलेश्वरी महाविद्यालय' में संगीत विभागाध्यक्ष के पद पर हो गई। फिर पी.एचडी करने के संदर्भ में मैं आपसे मिलने आपके घर गई। संयोग से मुलाक़ात हो गई। वर्षों बाद मुलाक़ात हुई। बहुत सारी बातें हुई; यह बताते हुए मुझे काफी हर्ष हो रहा था कि पी.जी. करने के दो साल बाद हीं मैं लेक्चरर हो गई और अब पी. एचडी अनिवार्य है तो आप आगे बतायें। आपने कहा, "हां, तो करो और रेडियो वगैरह में क्यूंँ नहीं गाती हो?" और आपने मिथिला विश्वविद्यालय में किसी का परिचय दिया और उन के नाम की चिठ्ठी दे कर मिलने बोला। फिर आपने 'भैरव राग' सुनाया। इतने सालों बाद भी वही चमक, वही दमक, वही खनक, मैं आवाक़ थी । बोलीं, "तुम आया करो, कहाँ अब ऐसा माहौल मिलता है।" मैं चलने लगी तो बोलीं, "मुझे देख कर बताओ पहले जैसी दिखती हूँ?" मैंने बोला, "आप जैसी कॉलेज में थी बिल्कुल वैसी हीं हैं, मैं दंग हूँ," तो बोलीं, "यह सब योगा के कारण है, मैं आज भी योगा करती हूँ और रियाज़ करती हूँ सुबह-सुबह।"
लेकिन अब ये समाचार सुनकर विस्मित हूंँ कि आप इस दुनियांँ में नहीं हैं। मैं आपको बता भी नहीं सकी कि मेरा रोम-रोम ऋनी है आपका कि आपके सहयोग से मैंने पी.एचडी के लिए काम करना शुरू किया, कुछ सेमिनार अटेंड करने के बाद, ट्रांसफर कि वजह से शहर छोड़ना पड़ा। बस यही कहूंँगी कि — साहिल पर आ के भी मंज़िल नहीं मिली,
इसी कसक के साथ ज़िंदगी गुज़र रही।
आपकी आँखों से इंतज़ार का पल मैं दूर नहीं कर पाई और आपने आंँखें बन्द कर ली।
लेकिन मेरा मानना है कि आप मरी नहीं है आप मर हीं नहीं सकतीं हैं बल्कि कोई भी नहीं मरता है वो तो बस ये होता है कि दूसरा स्थूल ग्रहण करने यात्रा पर निकलती है आत्मा, रहती है ज़र्रे-ज़र्रे में, देखती है ज़मीं, देखता है आसमां।
और आप तो आवाज़ हैं, (जी हां मैं "हैं" हीं कहूंँगी) आवाज़ कभी मरती नहीं। मैं जानती हूँ आप सूक्ष्म शरीर के साथ इसी कायनात में हैं इसीलिए मैंने लिखने का सहारा लिया अपनी भावना आप तक पहुंचाने के लिए। जानती हूंँ जरूर पहुंचेगी मेरी भावना और ये वंदन: शत् शत् नमन आपको मेरी तरफ़ से और उन सारी लड़कियों की तरफ़ से जिसने आपसे शिक्षा प्राप्त की है। आपको शत-शत नमन।🙏🙏