यह देश की सीमा पर जंग नही,
वल्कि देश के अन्दर की जंग है।
राजनीति करने वाले चालाकी से,
मजहब की मजहब से जंग कराते।
जातीयता की अहम भागीदारी से,
खुश हो होकर सारे नेता इठलाते।
रोटी कपडा और मकान के दम पर,
गरीबी में जीवन का दाँव लगवाते।
जीवन में संघर्ष विराम होता नही,
सुने हुए 'उपदेश' कोई काम न आते।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद