कौन जाने दोस्तो
कौन जाने दोस्तों कब, क्या हो जाए
संग-संग हैं अभी, अभी बिछड़ जाए
हर रास्ते पर एक राहगीर मिल जाए
सपना को हकीक़त, हकीक़त को सपना कर जाए
परिस्थिति ऐसी की कांटों पर चलना सीख जाए
पारसमणी जैसी चमकूँ ऐसा कुछ हो जाए कौन जाने दोस्तों कब, क्या हो जाए
– सुप्रिया साहू