दिनांक - 28/05/2025
विषय - वन्य जीवों की पुकार
रचनाकार - प्रेमलाल किशन (सहा.शि.)
विकास खंड व जिला - सक्ती छत्तीसगढ़
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जंगल-झाड़ी अब उजड़ रहे हैं, वन्य प्राणी हो रहे हैं लाचार |
मानव पेड़ों को अब ना काटे, वन्य जीव कर रहे हैं पुकार ||
देश-विदेश के बड़े व्यापारी, आकर जंगल को कटवा रहे हैं |
बड़ी-बड़ी कारखाने बनाने को, जंगल को ओ छंटवा रहे हैं ||
वन्य जीव में भगदड़ मची है, सोच रहे हैं कहां जीवन बिताएं |
अपने रहने का घर उजड़ रहा, अब हम किस जंगल में जाएं ||
छोटे-बड़े सब जीव जन्तु को, चिंता अब सताने लगी है |
जंगल को जलाकर मानव, वन्य जीवों को भगाने लगी है ||
वन में तांडव मचा हुआ है, वन्य प्राणी कर रहे चीख पुकार |
मतलबी ना जाने अन्य जीव का,वन को काट रहा लगातार ||
चूहे, खरगोश और बिलों के जीव, अपने घर से निकल रहे हैं |
ना निकले तो आग की लपेट में, जलकर ओ झुलस रहे हैं ||
वन कट रहे बड़े-बड़े जंगलों का, जानवर वहां से भाग रहे हैं |
आग की लपेटों से बचने के लिए, दिन-रात ओ जाग रहे हैं ||
वन्य संपदा भी नष्ट हो रहा, नहीं हो रहा है कोई सुधार |
मानव पेड़ों को अब ना काटे, वन्य जीव कर रहे हैं पुकार ||
हाई बोल्ट के विद्युत तारें, धरती पर मानव अब बिछाने लगे हैं |
वहीं तारें अचानक टूट जाने से,वन्य प्राणी की जान जाने लगे हैं ||
खेतों की सुरक्षा के लिए,खेत के चारों ओर विद्युत झटके के तारे हैं |
वन्यजीव अनजान हैं इनसे,खेत में गये तो झटके खाते सारे हैं ||
प्राणी जगत को जीवन है प्यारा,मत करो उनका संहार |
मानव जंगलों को मत उजाड़ो , वन्यजीव कर रहे हैं पुकार ||
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प्रेमलाल किशन