निकट यहीं है छिपा किनारा
फिर जीवन क्यों हो दुश्वारा
उठो! पथ पर चलना हमको
आने को है अब उजियारा
जीवन है यह कितना प्यारा!
तितली सी मुस्कान तुम्हारी
अंकित इनमे जीवन क्यारी
तुम ही हार गये गर तो फिर
कौन बनेगा जग का तारा
जीवन है यह कितना प्यारा!
उषा सी मुस्कान लिए तुम
संतापो का ज्ञान लिए तुम
स्वयं से उठकर देखो यह
विश्व आज है प्राण तुम्हारा
जीवन है यह कितना प्यारा!
तुम ही जीवन की रेखा हो
तुम तप हो औ' तुम मेघा हो
तर करदो अपने कदमों से
दूषित-शापित जीवन सारा
जीवन है यह कितना प्यारा!
अब जब सागर में उतरे हो
बहने से जो तुम निखरे हो
नैया टूटी गर छलांग से
तरना तुमको सागर सारा
जीवन है यह कितना प्यारा!
_अध्यात्म सिंह