कापीराइट गजल
जब होती हैं बातें मेरी इन बेदर्द हवाओं से
रोज तरसता हूं मैं गम की नई फिजाओं से
कितनी बार पुकारा तुझ को मैंने तन्हाई में
सिसक रही हैं सांसे गम में ठंडी आहों से
रख देते गर हाथ ये अपना मेरे दिल पर
सब हो जाते हाल बयां मेरी इन सांसों से
कभी तो तुम भी, कह देते दिल की बात
कभी तो तुम भी आ जाते मेरी बाहों में
मेरे नसीब में लिखा है, यूं ही आहें भरना
हम को मिला नहीं, कोई भी ऐसा राहों में
काश कभी हो ऐसा हमको तेरा प्यार मिले
खिल उठूं फूलों जैसा, इन सर्द फिजाओं में
लेकर आए हैं ये नसीब यादव अपना-अपना
कोई खेले प्यार के संग, कोई डूबा आहों में
सर्वाधिकार अधीन है