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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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कविता की खुँटी

                    

मां-एक जीवन गाथा


“माँ: एक जीवन गाथा” एक मार्मिक कविता है, जो मातृत्व के असीम त्याग, ममता और प्रेम को सजीवता से प्रस्तुत करती है। यह रचना न केवल एक व्यक्तिगत अनुभूति है, बल्कि हर उस व्यक्ति के दिल की आवाज़ है, जिसने माँ की छांव में जीवन के कठिनाइयों को सहा है।
लेखक का कहना है कि माँ के लिए कविता लिखना सरल नहीं, क्योंकि माँ स्वयं एक ऐसी कविता हैं जिन्होंने उन्हें पहली बार कलम थमाना सिखाया। इस कविता में उस अनमोल बंधन की गहराई और जीवन को दिशा देने वाली माँ की भूमिका को बहुत ही संवेदनशील और सुंदर ढंग से उकेरा गया है।

लेखक परिचय:

अभिषेक मिश्रा, बलिया के युवा कवि और लेखक, जिनकी लेखनी जीवन के जटिल पहलुओं को सरल और प्रभावी भाषा में व्यक्त करती है। उनकी कविताएँ समाज, मानवीय भावनाओं और देशभक्ति की भावना से प्रेरित हैं। अभिषेक की यह रचना मातृत्व के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा और सम्मान का परिचायक है।

"माँ – एक जीवन गाथा"

माँ हैं वो, न कोई कथा, न कहानी हैं,
हर साँस में बस उसकी कुर्बानी हैं।
जो खुद को हर पल पीछे छोड़ गई,
माँ – सच में एक जीवन गाथा हैं।

वो भी कभी पायल पहनती थी,
आँगन में खुलकर हँसती थी।
छोटी-छोटी बातों में रुठती थी,
सपनों की दुनिया में झूमती थी।

फिर एक दिन चुपचाप विदा हुई,
हँसी ओढ़े, आँखों से ग़म बहा गई।
दुल्हन बनी तो जिम्मेदारी ओढ़ी,
बेटी से बहू की राह पकड़ गई।

हर सुबह सबसे पहले जागी,
सपनों को पीछे छोड़ भागी।
अपने मन की बात न बोली,
दूसरों की ख़ुशियों में ही डूबी।

फिर माँ बनी... जीवन बदल गया,
उसकी दुनिया एक बच्चे में सिमट गया।
रातें जाग-जाग कर काटीं उसने,
ख़ुद को खोकर मुझे पाला उसने।

कभी मेरी भूख से भूखी रही,
कभी मेरी नींद में जागती रही।
खिलौनों से पहले किताबें चुनी,
मेरे हर आँसू को वो खुद में सहेजी।

कभी डर में मेरी ढाल बनी,
कभी ग़लतियों पर सवाल बनी।
हर बार खुद को पीछे रखकर,
मुझे दुनिया से आगे रखा उसने।

आज भी जब थककर लौटता हूँ,
उसके आँचल का सुकून ढूँढता हूँ।
वो कहती है — "मैं ठीक हूँ बेटा",
पर आँखें सब कुछ कह जाती हैं।

लिखते-लिखते थम गया क़लम,
माँ का प्यार शब्दों से बह गया।
जो कहना चाहा, अधूरा ही रह गया,
हर मिसरा उसकी ममता में खो गया।

मैं — अभिषेक, बस महसूस कर सका,
लिख न सका, जितना माँ जी चुकी हैं।
हर कविता मेरी अधूरी है माँ के बिना,
क्योंकि वो खुद एक अनकही कविता हैं।

– अभिषेक मिश्रा बलिया




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (5)

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Shiv Charan Dass said

बिलकुल अभिषेक जी माँ तो ममता का महाकाव्य है ......बहुत सुन्दर रचना

अभिषेक मिश्रा replied

धन्यवाद् आपका शिव जी, मां के लिए लिखना संभव नहीं हैं बस यह रचना एक छोटी सी प्रस्तुति है। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

वन्दना सूद said

जो कहना चाहा, अधूरा ही रह गया,👌👌👏👏बहुत शानदार लिखा ✍️✍️माँ के लिए लिखना आसान नहीं है क्योंकि इतनी ताक़त ही नहीं है किसी कलम में जो “माँ” शब्द को ब्यान कर सके

अभिषेक मिश्रा replied

जी धन्यवाद आपका, बहुत सही कहां आपने, मां कि कहानी को लिखना संभव ही नहीं है, बस एक छोटी सी झलक लिखी जा सकती हैं।

Ankush Gupta said

बहुत सुन्दर रचना

अभिषेक मिश्रा replied

जी धन्यवाद् आपका ...

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

यह कविता नहीं, माँ की ममता का आईना है — और आपने हर भाव को ऐसा सजाया है कि दिल भर आया। "माँ" पर इतना सजीव, संवेदनशील और सच्चा लेखन विरले ही पढ़ने को मिलता है। सादर प्रणाम

अभिषेक मिश्रा replied

आप जैसे संवेदनशील साहित्यकार की ओर से ऐसा हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया मिलना मेरे लिए गौरव की बात है। 'माँ एक जीवन गाथा' मेरी लेखनी नहीं, मेरे मन का स्पंदन है — जिसे आपने इतने स्नेह और गहराई से महसूस किया, इसके लिए मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ। आपका आशीर्वाद मेरी लेखनी को और भावप्रवण बनाए, यही कामना है। सादर प्रणाम।

रीना कुमारी प्रजापत said

Dil ko chhu jane waali rachna.. bahut sundar 👌

अभिषेक मिश्रा replied

मां जैसे पवित्र भाव पर लिखी रचना को आपने महसूस किया, यही मेरे लेखन की सबसे बड़ी सफलता है। आपका हृदय से धन्यवाद रीना जी... मां पर लिखा हर शब्द सिर्फ मेरा नहीं, हम सबका होता है।"

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