बचपन हंस खेल कर गुजार दिया
हर घडी हर पल यूं हीं बेकार किया
न लिखा न कभी पढा
जिंदगी में न आगे बढा
जब जवानी आयी
दिमाग पर मस्ती छाई
हर लडकीयाें से आँख लडाई
कभी किसी से मार खाई
कभी किसी काे पटाई
कभी करी किसी से जुधाई
नजर बुरी बात पर ही टिकाई
ध्यान सिर्फ इसी में लगाई
जब बुढापा आया
तब जा कर समझ पाया
किसी का साथ भी नहीं
किसी से बात भी नहीं
शरीर में जाेश भी नहीं
दिमाग में हाेश भी नहीं
ऐसी अपनी दुख भरी हाल में भी
लडखडाते चलने की चाल में भी
घर के लाेग बाेलते कुछ करता भी नहीं
कितना जिएगा...ये बुढा मरता भी नहीं
ये बुढा मरता भी नहीं.......
----नेत्र प्रसाद गौतम