तुम जो इतना इतरा रहे हो
तो फिर मेरे सवालों से क्यों
घबरा रहे हो।
जो बन ठन के यूं चलते हो
क्या कभी तुम आईने में
अपना चेहरा नहीं देखते हो।
चलो माना कि अब तुम्हें भी
चलना आ गया ,
लगता है तुम्हें भी छलना आ गया।
लोग तो वैसे भी जलते थें
अपनी मोहब्बत से
अब तुम्हें भी लोगों की तरह
जलना आ गया।
उंगलियाँ क्यों सिर्फ़ मुझपे उठा रहे हो
सवालों के घेरे में तो तुम भी
कुछ कम नहीं
अगर तुम्हें मेरी फ़िक्र नहीं तो
मुझे भी तेरा गम नहीं
अब मुझे भी तेरा गम नहीं....