किसी बहाने तो।
रोग बन जाओ हमारी रूह का,
तो कभी ना कभी दवा बनकर आया करो।।
शौक़ बन जाओ हमारे मन का,
तो कभी ना कभी नशा बनकर छाया करो।।
भूल बन जाओ हमारी तकदीर की ,
तो कभी ना कभी याद बनकर आया करो,
दु:ख बन जाओ हमारी आवाज़ की,
तो कभी ना कभी मस्त होकर गाया करो।।
दाग बन जाओ हमारे दिल का,
तो कभी ना कभी साफ करने तन्हा तन्हा आया करो।।
बददुआ हम हैं तो दुआ बनकर,
कभी ना कभी सताया करो।।
कभी ना कभी गहरे रंगों से,
एक नया ढंग लाया करो।।
भँवरा हम हैं तो,
कभी ना कभी फूल बनकर बुलाया करो,
रूठ जाएं हम तो ,
रुसवाई में ही सही कभी ना कभी मनाया करो।।
लबों पर ना हो तो विचार बनकर,
कभी ना कभी आया करो,
अपना ही ना सही तो,
कभी ना कभी पराया करो,
मीठा ही ना सही,
तो कड़वा रस बनकर कभी ना कभी हमारी जिह्वा पर आया करो,
तरसते कण्ठ में ठण्डा जल ही ना सही,
तो रूखी सूखी प्यास बनकर कभी ना कभी
आया करो,
खुद आंखों से ना बहे सको,
तो हमारी आँखों से बहकर कभी ना कभी पलकों पर आया करो,
खुद को खुद से अलग कर ,
हम को हमीं से मिलाया करो,
जो चुप हैं अपनी ही सरहद पर,
उन्हें बुलंद आवाज़ बनकर बुलाया करो,
हमारे सीने से हृदय को अलग कर,
तुम्हारे जज्बातों से मिलाया करो,
सुरूर में ही ना सही,
हमारे गरूर में छाया करो,
जो उदासी छायी है चेहरे पर,
उसे निकालकर अपनी कान्ति से मिलाया करो,
कीमत ना चुका सको तो 'ललित',
उधारी की साख पर कभी ना कभी बुलाने का फरमान लाया करो।।
- ललित दाधीच