कम से कम इतनी जिल्लत ना हम उठाते
तेरे सिवा खुदा से कुछ और मांग लेते
हमको कहाँ था इल्म भला बेवफाई का
वरना वफा का नाम भूलकर ना लेते
खो जाता है सब कुछ मिलता नहीं इश्क मे
फेहरिस्त बड़ी है यूं किसका नाम लेते
दीदार ही लिखा है अगर किस्मत में हमारी
दास तस्सुवर में ही कुछ ख्वाब सजा लेते
हकीकत और फ़साने में फर्क है ज्यादा बहुत
इन बेकार की बातों में ऐसे ना पड़ जाते II