कहां गया वह देश मेरा
जो सोने की चिड़िया
कहलाता था।
सूरज के उगने से पहले
कभी आज़ान तो कभी
भजन सुनाता था।
हवाएं दूषित नहीं थी
नदियां भी सबकी
स्वच्छ थीं
सभी के लिए एक हीं
देश एक हीं भेष
एक हीं रंग राग रूप था
देश कभी इतना बंटा नहीं था।
क्यूं लोग लोग के खून के प्यासे हो गए
अपने हीं अपनों को लूट ले गए।
सोनें की चिड़ियां अब
चमचमाती नहीं है
पंखों को भी नोच लिया गया
सब लोग स्वार्थी हो गए
बिन नींद के सब सो गए
न जाने वो हसीन दिन कहां
चले गए..
अब वो लोग भी ना रहे
अब वो आबो हवा भी ना रही..
अब वो आबो हवा भी ना रही..

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




