बिन पत्तियों का खिला हुआ मैं वो पलाश हूं,
तुझे मेरी तलाश है पर मैं अपनी तलाश में हूँ l
रंग बदलती दुनिया है नित बदलती लिबास है ,
तू भेस है बदलता पर मैं खुद के लिबास में हूं l
मौसम में तपिश सी है और खुश्क भी हैं होंठ,
तू देखता है सागर पर मैं नदी की तलाश में हूं l
देख, अब चल पड़े हैं रस्ते , हर मोड़, हर गली,
तू रुका हुआ है उस पर मैं अपनी निकास में हूं l
कभी तो कांच, कभी हीरा लगा वो नग उसे,
तू दूर हो के बैठा पर मैं उसकी उजास में हूं l
सब कह रहे कहानियां कुछ झूठ कुछ फरेब,
तू खो गया है उनमें पर मैं होशो हवास में हूं l
लब सी लिए हैं उसने मगर आंखों में अश्क है,
तू गुमसुम सा है मगर मैं तूफ़ाँ की तलाश में हूं l
मौसम बदला बदला है आकाश में छाए बादल हैं,
झूठा मौसम तू कहता मैं सूरज के आभास में हूं l