बहुत आसा नही होता कि अपने ग़म को पी जाये,
है चाहत गर समुन्दर तो इसके विष को पी जाये,
यहां कोई नहीं बैठा डगर के हर ठिकानों पर,
तेरा विश्वास जिंदा है गर तेरे रुतबे में ताकत है,
बहुत आसा --------'
समा रंगीन है मंज़िल के ठिकानों पर,
दम तोड़ती आहे यहां मुश्किल दो राहों पर,
कहा जाऊँ कहा छोढूं यही उलझन सताती है
भटकती खुशनसीबी भी यहा सदमे में रहती है.
कभी पाने की चाहत में कभी खोने की आहट में,
समंदर भी कभी अपने में डूब जाता है,जब अपने इल्म का ऐतबार खुद को सताता है,
यहां कोई नही----
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




