क्यों व्यर्थ के पल समेट रहे हो
न बड़प्पन रहा बड़ों में
न मर्यादा रखी छोटों ने
कोई आँख में शर्म नहीं रही है बाकी
कोई धन के लिए लड़ रहा
कोई हक के लिए सता रहा
असल में कोई जी नहीं रहा
सब अपनी झोली में
व्यर्थ के पलों को समेट रहे ..
इंसानियत की क्या उम्मीद करें
इन्सान इन्सान ही नहीं रह गया
कोई किसी की बेटी बनी बहु के
आँसू झलका रहा
कोई किसी की माँ की पलक से
आँसू गिरा कर आह भी नहीं भर रहा
अपने अहम् अपनी आज़ादी में मशरुफ़
कितनी ही ज़िन्दगी दाव पर लगा रहे..
----वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




