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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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कविता की खुँटी

                    

क्यों व्यर्थ के पल समेट रहे हो - वन्दना सूद


क्यों व्यर्थ के पल समेट रहे हो
न बड़प्पन रहा बड़ों में
न मर्यादा रखी छोटों ने
कोई आँख में शर्म नहीं रही है बाकी
कोई धन के लिए लड़ रहा
कोई हक के लिए सता रहा
असल में कोई जी नहीं रहा
सब अपनी झोली में
व्यर्थ के पलों को समेट रहे ..

इंसानियत की क्या उम्मीद करें
इन्सान इन्सान ही नहीं रह गया
कोई किसी की बेटी बनी बहु के
आँसू झलका रहा
कोई किसी की माँ की पलक से
आँसू गिरा कर आह भी नहीं भर रहा
अपने अहम् अपनी आज़ादी में मशरुफ़
कितनी ही ज़िन्दगी दाव पर लगा रहे..


----वन्दना सूद


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (5)

+

फ़िज़ा said

बहुत सुन्दर लिखा

वन्दना सूद replied

शुक्रिया 🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

आपकी रचनाओं में खूबसूरत रचनात्मकता एवं संतुलन देखने को मिलता है - बहुत ही सुन्दर रचना!!

वन्दना सूद replied

आप सब के ऐसे comments पढ़ कर शब्दों में भाव आ जाते हैं

वेदव्यास मिश्र said

यही तो हो रहा है आजकल वन्दना मैम..बिलकुल सही रचना ..अब लोग बेशर्म हो रहे हैं !!

वन्दना सूद replied

जी हाँ!हम सब का यही काम है कि हम अपनी लेखनी से सबको सही राह दिखाने की कोशिश करें पर उससे पहले अपने पर implementkaren

आत्माराम जानकी said

"इंसानियत की क्या उम्मीद करें इन्सान इन्सान ही नहीं रह गया" बिलकुल सही कहा आपने सच्चाई तो यह है कि मुझे सुनने और बोलने में आपकी कविता अच्छी लग रही है लेकिन कहीं ना कहीं कभी न कभी गैर इंसानियत में या हम सब दिखा ही देते हैं खैर आपकी पंक्तियों से आगे से अमल करने की कोशिश करूँगा और ध्यान रखूंगा

वन्दना सूद replied

sir आपने सही कहा 😊🙏हमारा मन की चंचलता सही ग़लत को नज़रअंदाज़ कर देती है कई बार

میری صبح said

بہت اچھی نظم

वन्दना सूद replied

Sorry sir, can you please translate your name and comments

वन्दना सूद replied

Thankyou 😊

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