किस दिल में कहो कि लरज़ा नहीं है,
यूँ मर-मर के जीने में तो मज़ा नहीं है।
गिर्द-ओ-पेश आलम है बदहवासी का,
यह जीना जीना है क्या, सज़ा नहीं है?
बहार-सबा, मौसम-ए-गुल, बादा-मीना,
सब वही मगर पहले सी फ़ज़ा नहीं है।
आगे किस रुख़ है किस्मत का सफ़ीना,
साहिल का दूर तलक़ कुछ पता नहीं है।
टूटते हैं साँसों के तार ये वक़्त आख़िरी है-
दुआ-दवा सब बेअसर, कुछ बचा नहीं है।
ले-दे कर अब तो सताता है यही सवाल-
तेरी तो इस में मालिक कहीं रज़ा नही है?
करनी हैं मुझको तुझसे कितनी बातें अभी-
तू अपने दिल में देख तो कुछ दबा नहीं है।
ढंके-ढंके सभी चेहरे गुलरुखों के 'हमराह',
निगह-ए-शौक़ तेरी तो इस में ख़ता नहीं है।
----अहसन 'हमराह'


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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