गीत - रहा हूँ मैं
जरा सी बात कहनी थी....
जरा सा जर रहा हूँ मैं
खुद से मिलने की महफिल में
सफ़ -ए - आखिर रहा हूँ मैं
वक़्त का ही तकाजा है
के बहुत सुलझा सा हूँ बैठा
इससे पहले बहुत पहले
बड़ा शातिर रहा हूँ मैं
तूँ अब इतरा के चलता है
बड़ी ही शान - शौकत में
बता तेरे किस वक़्त में मैं
नहीं हाजिर रहा हूँ मैं
बनाने पर मैं आ जाऊँ
किसी को लूँ बना अपना
तजुर्बेदार मैं भी हूँ
बड़ा माहिर रहा हूँ मैं
तेरे चेहरे पे चेहरा है
जरा सा लेप ले सच को
मैं जब भी जैसा था
महज जाहिर रहा हूँ मैं
मुझपे चाल चल - चल कर
तूँ मेरी जद तक न पहुंचेगा
तेरी चपेट में आने से
बहुत बाहिर रहा हूँ मैं
-सिद्धार्थ गोरखपुरी