स्थिर मन में,
शांत लहरें,
आज क्यों हैं?
आसमान में,
काले पहरे,
आज क्यों हैं?
सुन रहे हैं सबकुछ,
फिर भी लोग बहरे,
आज क्यों हैं?
तन बदन में आग लगी है,
दिल में फिर भी राज गहरे,
आज क्यों हैं?
पतझड़ के सूखे उपवन में,
भ्रमित भँवरे,
आज क्यों हैं?
स्थिर मन में,
शांत लहरें,
काले पहरे,
लोग बहरे,
राज गहरे,
भ्रमित भँवरे,
आज क्यों हैं?
-अशोक कुमार पचौरी