ख़्वाहिशें ज़िंदा है अभी ज़ेहन में,
रहना नहीं तुम उनके मरने के वहम में।
परिपक्व हो नहीं रही बस बिना माहौल के,
इंतज़ार में है वो सही समय के।
मेरी ख़्वाहिशें मरेगी नहीं कभी भी,
वो जी रही है मेरी ग़ज़ल में।
मेरी ख़्वाहिशों का कत्ल हुए जा रहा है,
फिर भी ये पूरी होगी आस है यही मन में।
ख़्वाहिशें बुरी नहीं थी फिर भी रोका तुमने,
पर ख़ुदा मेरे साथ है, छाऊॅंगी ज़रूर गगन में।
🖋️ रीना कुमारी प्रजापत 🖋️