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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

तू उड़ता रहा, मौत उतरती रही

सुबह थी—
जब खिड़की से धूप नहीं, धुआँ दिखा
Air India की फ्लाइट AI171
उड़ी नहीं, गिरी थी।

इंजन में आग नहीं लगी थी,
आग तो पहले ही कागज़ों में लगी थी।

टेक-ऑफ़ से पहले ही,
टेक्निकल फॉल्ट दर्ज थे—
इंजन में थ्रस्ट गड़बड़, सेंसर फेल, हाइड्रोलिक सिस्टम में दबाव कम,
लेकिन अफ़सर बोले—

“उड़ने दो, लेट हुई तो ‘बिग लॉस’ होगा।”

पायलट बोला —
“ये विमान हवा के भरोसे नहीं,
भगवान के भरोसे चलेगा!”

ATC ने सुना,
फिर फोन घूमा…
“कुछ नहीं होगा, टेक ऑफ़ क्लियर करो।”
क्योंकि “VVIP” पैसेंजर थे,
और मुनाफ़ा दांव पर था।

और फिर…
जो होना था वो हुआ—
धुआँ भर गया केबिन में,
बच्चे चीख़ने लगे,
माँ की गोद में
दूध पीता बच्चा जल गया।

Runway पर गिरा विमान नहीं था—
गिरा था इंसानियत का स्तर।

फिर प्रेस कांफ्रेंस हुई—
“हम जाँच करेंगे।”
फिर जाँच समिति बनी,
फिर रिपोर्ट आई…
“मानव त्रुटि और तकनीकी विफलता।”
और
फिर वही विमान उड़ता रहा।

अब तक उस विमान को
ग्राउंड कर देना चाहिए था,
हर बोल्ट-नट चेक होना चाहिए था,
हर रिपोर्ट, हर सर्टिफिकेट,
फिर से सत्यापित होना चाहिए था।

लेकिन क्या हुआ?
Air India का नया बयान आया—
“सेफ़्टी स्टैंडर्ड्स मजबूत किए जा रहे हैं।”
और वही विमान
अगले ही हफ़्ते दिल्ली से लंदन के लिए उड़ गया।

क्यों?
क्योंकि प्लेन बंद करना
हर दिन का करोड़ों का घाटा होता है।
क्योंकि फ्लाइट कैंसल मतलब
रीफंड देना होता है।
क्योंकि जाँच मतलब
“दोषी खोजो” —
और दोषी तो… “अंदर” ही बैठे हैं।

सवाल यह नहीं कि हादसा क्यों हुआ।
सवाल यह है कि
अब तक उसे क्यों नहीं रोका गया?

क्यों नहीं Grounded किया गया हर 787 Dreamliner?
जब अमेरिका में,
यूरोप में,
फ्रांस में भी बोइंग पर सवाल उठे,
तो भारत में क्यों चुप्पी छाई रही?

DGCA (Directorate General of Civil Aviation)
ने जांच की,
पर जाँच किसने की?
उसी कंपनी ने जो दोषी थी।

सेफ़्टी ऑडिट हुआ,
पर रिपोर्ट पब्लिक नहीं की गई।

Freedom of Information के तहत माँगे गए जवाब में
लिखा आया:

“Sensitive Details — Cannot Be Disclosed.”

और सरकार?
वो तो
#ViksitBharat
के हैशटैग में व्यस्त है।

मंत्री जी ने सिर्फ़ ट्वीट किया:
“हम पीड़ित परिवारों के साथ हैं।”
और अगले ही दिन
बोइंग CEO से मीटिंग कर ली।

अब भी विमान
उड़ रहा है —
क्योंकि सिस्टम कहता है:

“तब तक कोई नहीं मरेगा
जब तक मीडिया चिल्लाए नहीं।”

अब वक़्त है — रोक दो सब कुछ!
हर विमान की री-जाँच हो
हर तकनीकी दस्तावेज़ फिर से पढ़े जाएँ
हर सेफ़्टी टेस्ट फिर से हो
हर रिपोर्ट सार्वजनिक हो
और तब जाकर उड़ान को इजाज़त मिले।

वरना अगली बार…
वो कोई बच्चा होगा,
जो पहली बार पापा की उँगली थामेगा
और आख़िरी बार हाथ जलाकर रोएगा।

Dreamliner” को “Deathliner” बनने से रोको—
वरना एक दिन तुम्हारे अपनों की उड़ान भी
उनके लौटने से पहले राख बन जाएगी।
शर्म आनी चाहिए…
जब कॉकपिट में बैठे पायलट की चेतावनी
“मैकेनिकल फेल्यर” के नाम पर फोल्डर में दबी रह जाए
और बोर्ड रूम में कॉफ़ी का ऑर्डर पहले आ जाए।

शर्म आनी चाहिए…
जब ज़िंदगियाँ गिरती हैं
तो फ्लाइट अटेंडेंट्स को
मुस्कान न खोने की ट्रेनिंग दी जाती है—
पर टेक्निशियन को
ईमानदारी की कोई वर्कशॉप नहीं मिलती।

शर्म आनी चाहिए…
जब बोइंग की खिड़कियों से
आसमान नहीं, राख का गुबार दिखता है
और कंपनी कहती है—

“We are deeply saddened.”
जैसे दुःख भी अब PR टीम की प्रॉपर्टी हो गया हो।

शर्म आनी चाहिए…
कि टिकट बेचते हो जैसे ट्रिन्केट्स,
और मरने वालों को देते हो
2 लाइन की माफ़ीनामा प्रेस रिलीज़।

शर्म आनी चाहिए…
कि अब भी फ्लाइट्स उड़ रही हैं,
उसी फॉल्टी चिप्स,
उसी अधूरी जाँच,
उसी बेशर्म व्यवस्था के साथ।

माफ़ करना यात्रियो—तुम ग्राहक नहीं, गिनती थे”
तुम्हारी हड्डियाँ गिनी जाएँगी,
तुम्हारी आँखों की जलन
अब “एयरबोर्न स्मोक” कहलाएगी।
तुम्हारी आख़िरी चीख
ब्लैक बॉक्स में सेव होगी,
पर कोई उसे सुनने की हिम्मत नहीं करेगा।

ब्लैक बॉक्स नहीं, सिस्टम ब्लैक है
ब्लैक बॉक्स क्या बताएगा?
कि मशीन ने धोखा दिया?
या ये कि इंसानों ने
मुनाफ़े के लिए मर्यादा की हत्या कर दी?

वो बॉक्स नहीं खोलेगा
वो फ़ाइल जिसमें लिखा था—

“इंजन की टेस्टिंग पेंडिंग है”
पर साइन कर दिया गया:
“Proceed. Flight can’t be delayed

Air India नहीं, Error India है!”
Error India 171 —
टेक-ऑफ़ नहीं हुआ,
बल्कि सिस्टम का पर्दाफ़ाश हुआ।

सीटें भर गईं,
जेबें भर गईं,
बस श्मशान की राख बाकी रह गई।

आकाश में नहीं, लालच में क्रैश हुआ था विमान
मौत आई,
पर स्पॉन्सर नहीं था उसके पास।
सो कोई प्रेस रिलीज़ नहीं छपी।

क़ब्र में लेटे मुसाफ़िरों के पैरों में
अब भी सीट बेल्ट बंधे हैं,
और विमान कंपनी कह रही है—

“हमारी सेवाएँ बेहतर होंगी
अगले अपडेट में।”

सेफ़्टी एक स्लोगन थी??
वो तो बोर्डिंग के पहले
एक प्लास्टिक कार्ड था—
जिसे होस्टेस ने दिखाया,
और हम सबने मुस्कुरा कर
अपने फोन में इंस्टाग्राम खोल लिया।

इंजन कांप रहा था,
पर कंपनी के मैनेजर ने कहा—

“ग्राउंडिंग का मतलब लॉस है।”
और वो पायलट,
जिसने चेतावनी दी थी—
वो अब शहीद है।
पर HR रिपोर्ट में सिर्फ़
“मानव त्रुटि” लिखा गया है।

अब 250 लोग
लाशें बन चुके हैं
और मुनाफ़ा?
बैलेंस शीट में चुप बैठा है।




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

फ़िज़ा said

बहुत भावुक और हृदय को छू लेने वाली रचना

पवन कुमार "क्षितिज" said

रियल्टी check ✅ kar diya आपने

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