"प्रेम "
जब कविता लिखूं तेरी जुल्फों पर ,
तो शाम सी छा जाती है ।
जब कविता लिखूं तेरी आंखों पर ,
तो समंदर सी गहराई आती है ।
जब कविता लिखूं तेरे होंठों पर,
तो गुलाब की कली भी शर्मा जाती हैं।
जब कविता लिखूं तेरे दांतो पर,
तो बिजली सी चमक जाती है ।
जब कविता लिखूं तेरे चेहरे पर ,
तो चांदनी सी निखर जाती है।
जब कविता लिखूं तेरी चलने की अदा पर ,
तो नागिन सी लहर आ जाती है।
जब कविता लिखूं तेरी सांसों पर ,
तो फूलों की खुशबू सी महक जाती है ।
है कविता की शान तुझसे ही ,
कविता में यदि तेरा जिक्र न करूं ,
तो ये कविता पढ़ी भी नहीं जाती है ।
रचनाकार- पल्लवी श्रीवास्तव
ममरखा, अरेराज, पूर्वी चम्पारण (बिहार)