किसी को आंख, किसी को हाथ तो किसी को पांव तक नसीब नहीं...
मैं कितना खुशनसीब हूं कि मुझे बहुत कुछ मिला,
फिर भी मुझे इनकी ज़रा भी क़दर नहीं..!
रोता रहता हूं न जाने अपनी किस कमी को लेकर...
कोई खुश है ख़ुद में हज़ार खामियां लेकर..!
मैं गम में हूं कि मेरी एक ख्वाहिश पूरी न हुई,
कोई खुश है इस बात से कि उनकी कोई ख्वाहिश ही नहीं..!
मैं कोसता हूं जीवन को कि क्या ही दिया मुझे...
कोई शुक्रगुजार है खुदा का कि कुछ नहीं तो कम से कम जीवन तो दिया मुझे..!
मुझे खुशी में भी गम का एहसास हो जाता है...
कोई गम में भी खुशी आभास कर जाता है,
मुझमें भी होगी कई खूबियां शायद पर...
न जाने क्यूं मुझे पहले मेरी खामियां नज़र आता है,
कोई खुद में खामियां समेटे हुए
खूबियों की तलाश में निकल जाता है,
मेरे मन के ये अनचाहे भाव क्या खत्म भी हों पाएंगे कभी ?
क्या इन भावों के पीछे बिखरे खुशियों के रंग दिख पाएंगे कभी...?
--- कमलकांत घिरी.✍️

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




