उसने मुड़-मुड़ के न मुझे देखा होता जाते-जाते
बदल न पाते फ़ैसला उसे खो ही देते पाते-पाते
मगर पा कर भी न हासिल हुआ कुछ
बहुत दूर हो गए हम क़रीब आते-आते
एक हीं रहगुज़र के हम दोनों थे राही मगर
सानेहा हो गए दोनों मंज़िल तक जाते-जाते
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बदल न पाते फ़ैसला उसे खो ही देते पाते-पाते
मगर पा कर भी न हासिल हुआ कुछ
बहुत दूर हो गए हम क़रीब आते-आते
एक हीं रहगुज़र के हम दोनों थे राही मगर
सानेहा हो गए दोनों मंज़िल तक जाते-जाते