शर्म के घेरे में रहकर सुनाना चाहे।
दिल की दिलबर को बताना चाहे।।
कभी लगा कि तलाश खत्म हो गई।
दशको के बाद मन बहलाना चाहे।।
कशमकश नजरअंदाज न कर सकी।
कमबख्त दिल को भरमाना चाहे।।
मक़सद बदल ना जाए जिन्दगी का।
खुली हवा में थोड़ा सा उड़ना चाहे।।
गीत गुनगुनाये जिन्दगी का 'उपदेश'।
उबाऊ जिन्दगी से निकलना चाहे।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद