जीवन का सत्य कहाँ तक है ,
बस जीलो खुल के जब तक है!
क्यू डरते हो इस मृत्यु से , क्या विश इस जीवन में कम है?
झुटला मन को बहला फुसला ,
कब तक चांदनी दिखाओगे !
रवि छिपा छितिज तो क्या, इसको रोशनी तुम झूठी दिखाओगे!
बिन निशा की कालिमा क्या, दिनकर प्रभा तुम समझोगे !
फिर बिना मृत्यु क्या तुम,
जीवन की गरिमा पाओगे !
क्या सत्य असत्य क्या झूठ कपट ,
सब जीवन के बहकावे हैं !
क्या सोचा कभी खुद से तुमने, इनका सत्य कहाँ तक है !
जीवन का सत्य कहां तक है !
कुछ भोगो को पाते रहे ,
कुछ इसको झूठ बताते रहे !
कुछ दुनिया को मधुर बना रहे, कुछ इसको मोह बता रहे!
मिल गए इसिमे कुछ कह ना सके ,
दुनिया का सत्य कहा तक है !
जीवन का सत्य कहां तक है !
कुछ-उलझे काले केशों में, कुछ-उलझे मधुरम भेशो में ,
कुछ प्रेम करे कुछ ज्ञान गढ़े ,
कुछ भक्ति करे कुछ भोग करे ,
कुछ सोच रहे इस जीवन को ,
कुछ माग रहे पीयूष कलश ,
पर मृत्यु बन गई सत्य अटल,
पिलाति सबको बिकत गरल ,
क्या सत्य क्या झूठ कपट ,,
बस काल चक्र की लीलायें ,
बचा न सके इस चाकी से ,
मानव की कोई क्रीड़ायें,
बस जीलो जब तक जीवन है !
जीवन का सत्य कहां तक है!!
-तेज प्रकाश पांडे