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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

पूरा ब्रह्मांड समाया है

मां
धरती की तरह,
टूट कर कभी टूटती नहीं
बिखरकर कभी बिखरती नहीं
फूटकर कभी फूटती नहीं
सिहरकर कभी सिहरती नहीं
सारे ताप, महाताप, कष्ट भारी संताप
सह लेती है
ऋतुओं की प्रचंड प्रहार सह
सहजता से रह लेती है
मां
जल की तरह
बहकर, बहती नहीं कभी
ठहरकर, ठहरती नहीं कभी
रूठकर, रूठती नहीं कभी
शांत रह, शांत रहती नहीं कभी
कभी फुहारें, कभी लहर, दरिया कभी समंदर
बन,
बन जाती है जीवनदायिनी
मां
अग्नि की तरह
जलकर, जलती कभी नहीं
तपकर, तपती नहीं कभी
धधककर, धधकती नहीं कभी
रक्तक्रुद्ध हो, लपकती नहीं कभी
परिवर्तन कारिणी बन
सब कुछ बदलने की
कसम निभा लेती है
मां
आकाश की तरह
महाविशाल होकर भी,खुद को
विशाल नहीं समझती
सर्वोपरि होकर भी,खुद को
ऊपर नहीं समझती
देखें, मां की ओर
चाहे,तन की आंखों से
या,मन की आंखों से
दृष्टि ऊंची हो जाती है
मां
वायु की तरह
कभी बहती नहीं, बहकर
कभी उड़ती नहीं, उड़कर
दे जाती है, कुछ न कुछ
तूफान भी बनकर
बयार बनकर
तन-मन की पीड़ा सहला जाती है
सांसों में प्रीत,जीवन को संगीत
दे जाती है
मां
सचमुच,या तो ईश्वर है
या, ईश्वर की माया है
जिसके अंदर
पूरा ब्रह्मांड समाया है।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (16)

+

शिवचरण दास said

बहुत खूब. ..माँ तो माँ ही होती है

ललित दाधीच said

मां तो मां, कोई होड़ नहीं है, मां और पिता हमेशा जिंदगी देते हैं, बहुत कमाल का और दिल से लिखा है ❤️❤️🙏🙏

इक़बाल सिंह “राशा“ said

मां पर इतनी सुंदर और गहन कविता पढ़कर मन भावुक हो उठा। हर पंक्ति जैसे ममता की मौन शक्ति को शब्दों में बाँधती है। सचमुच, मां ईश्वर नहीं तो ईश्वर की सबसे सुंदर अनुभूति है। आपको सादर प्रणाम सर

आलम-ए-ग़ज़ल - परवेज़ अहमद said

वाह! बहुत ख़ूब! बे-मिसाल रचना! तारीफ़ के लिए हर अल्फ़ाज़ कम है! क्यूॅं न हो, माॅं को परिभाषित नहीं किया जा सकता! आपने एक ऐसी कविता लिखी है जो आगे जाकर अमर हो जाएगी! मैं इस रचना पे अपनी सारी ग़ज़लें क़ुर्बान कर सकता हूॅं! "It has been rightly said - God could not be everywhere, so He made mother!" 👌👌❤️🙏

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

शिवचरन सर जी सटीक समीक्षा और हौसला अफजाई के लिए हृदय से धन्यवाद।

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

ललित जी नमस्कार। आपने मेरी रचना को हृदय से लगाया। सुंदर तारीफ की।मेरा उत्साह बढ़ाया। धन्यवाद आभार 🙏🌹

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

इकबाल जी रचना जितनी सुंदर होती है। उतनी ही सुंदर प्रतिक्रिया। मेरी रचना के भावों का आलिंगन कर जो अभिव्यक्ति दी मेरे लिए अनमोल है।बस, ऐसे ही अपनापन बनाए रखिए।सादर नमस्कार

सुभाष कुमार यादव said

बहुत सुंदर रचना। 👌👌

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

परवेज जी नमस्कार।इस महफिल में मैं बड़ा ही खुशनसीब हूं कि आपकी ख़ूबसूरत ग़ज़ल भी पढ़ने को मिल जाती है और अपनी रचना पर इतना सारा प्यार। मां पर हम क्या लिख सकते हैं, मां तो अपने ममता की कलम से हमारी जिंदगी लिखती है।आपका बड़प्पन है कि जिगरी दोस्त की तरह मेरा हौसला बढ़ाया। तहेदिल से शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया।🌹🌹🌹🙏🙏

उपदेश कुमार शाक्यावार said

वाह बहुत खूब

पवन कुमार "क्षितिज" said

बहुत ही अद्भुत रचना 👌

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

उपदेश सर जी, पवन कुमार जी अपनेपन और प्यारी प्रतिक्रिया के दिल से आभार।🌹🙏🌹

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

सुभाष जी, मेरी रचना को हृदय से लगाया और मेरा हौसला बढ़ाया।आपको हृदय से धन्यवाद देता हूं। सादर नमस्कार।🌹🙏

श्रेयसी said

काश आपकी तरह हर इंसान अपनी मां को पढ़ पाता समझ पाता । बहुत हीं लाज़वाब रचना। माँ को कोटि-कोटि प्रणाम 🙏🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

क्या कहें... यह कविता नहीं, एक स्तुति है मां की — सृष्टि के मूल तत्वों में उसकी अडिग उपस्थिति की।
"धरती, जल, अग्नि, आकाश, वायु" — हर तत्व में मां की मौजूदगी को जिस सूक्ष्मता से पिरोया है आपने, वह अद्भुत है।
आदरणीय सोनवानी सर जी को सादर प्रणाम

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

आदरणीय अशोक जी सादर नमस्कार। आपकी समीक्षा में भरा अपनापन मुझे अच्छी कविता लिखने को प्रेरित करती है। मेरी कल्पना की परीधि को बढ़ावा मिल जाता है। हृदय गदगद हो जाता है। धन्यवाद, आभार!!🌻🌻🌻🙏🙏🙏

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