मां
धरती की तरह,
टूट कर कभी टूटती नहीं
बिखरकर कभी बिखरती नहीं
फूटकर कभी फूटती नहीं
सिहरकर कभी सिहरती नहीं
सारे ताप, महाताप, कष्ट भारी संताप
सह लेती है
ऋतुओं की प्रचंड प्रहार सह
सहजता से रह लेती है
मां
जल की तरह
बहकर, बहती नहीं कभी
ठहरकर, ठहरती नहीं कभी
रूठकर, रूठती नहीं कभी
शांत रह, शांत रहती नहीं कभी
कभी फुहारें, कभी लहर, दरिया कभी समंदर
बन,
बन जाती है जीवनदायिनी
मां
अग्नि की तरह
जलकर, जलती कभी नहीं
तपकर, तपती नहीं कभी
धधककर, धधकती नहीं कभी
रक्तक्रुद्ध हो, लपकती नहीं कभी
परिवर्तन कारिणी बन
सब कुछ बदलने की
कसम निभा लेती है
मां
आकाश की तरह
महाविशाल होकर भी,खुद को
विशाल नहीं समझती
सर्वोपरि होकर भी,खुद को
ऊपर नहीं समझती
देखें, मां की ओर
चाहे,तन की आंखों से
या,मन की आंखों से
दृष्टि ऊंची हो जाती है
मां
वायु की तरह
कभी बहती नहीं, बहकर
कभी उड़ती नहीं, उड़कर
दे जाती है, कुछ न कुछ
तूफान भी बनकर
बयार बनकर
तन-मन की पीड़ा सहला जाती है
सांसों में प्रीत,जीवन को संगीत
दे जाती है
मां
सचमुच,या तो ईश्वर है
या, ईश्वर की माया है
जिसके अंदर
पूरा ब्रह्मांड समाया है।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
सर्वाधिकार अधीन है