मोहनी सो मुख लिए ,मोहती हे मोह को भी
मोहन के मुख पे बो , मोहित हो जात हे
मोहन मनोहर को मोहक स्वरूप देख
एसो श्रृंगार देख ,रूप मनोहार देख
क्षण में तो कोटि कामदेव बार जात हे
लट घुंघरारी पार, कारि कजरारी धार
नयनन में कोटि कोटि सागर समात है
देख रही एक टुक ,हाय री अपार सुख
निरख निरख बहु ,दृग पुलकात हे
कभी देखे अंबर तो कभी कभी श्याम मुख
मानो की चंद्र स्वयं धरती पे आत है
साक्षी लोधी