👉 बह्र - बहर-ए-रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला
👉 वज़्न - 1212 212 122 1212 212 122
👉 अरकान - मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
ग़रीब इंसाँ ये सोचता है मिले उसे दो निवाले कैसे
रईस इंसाँ को फ़िक्र इसकी कि इतनी दौलत संभाले कैसे
दो वक्त की हो नसीब जिसको जहाँ में रोटी भी मुश्किलों से
वो आदमी जिंदगी में उल्फ़त के ख़्वाब पाले तो पाले कैसे
मैं जिनकी ख़ातिर चला शरारों पे हँसते हँसते था जिंदगी भर
वो मेरे अपने ही पूछते हैं कि आए पैरों में छाले कैसे
ये हिर्स हमको कहाँ ले आया नहीं सगा माल-ओ-ज़र से कोई
बना है भाई का भाई दुश्मन पड़े हैं आँखों पे जाले कैसे
इधर का दिखना उधर का होना ये आज कल है बशर की फितरत
ये शक्ल-ओ-सूरत के भोले भाले हैं दिल के देखो ये काले कैसे
जबान अपनी में रोक भी लूँ बयान कर ने से दिल की बातें
मगर निगाहों से हो बयाँ जो वो सच भी कोई छुपा ले कैसे
झुका के पलकें यूँ हँसना उसका ग़ज़ब मिरे दिल पे ढा रहा है
तुम्हीं बताओ कि दिल को अपने संभाले हम तो संभाले कैसे
वही है होता ख़ुदा जो चाहे की चाह से आदमी की क्या हो
कि वक़्त-ए-आख़िर के 'शाद' आने पे कोई ख़ुद को बचा ले कैसे
©विवेक'शाद'


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







