ऋतुओं के रंग जैसे रंग जाओ
बसंत ऋतु की हवाएँ चलने लगीं
पेड़ भी मस्ती में अपनी ज़ुल्फ़ें लहराने लगे
पीले फूल हर जगह मुस्कुराते नज़र आए
पक्षी भी चहचहाते हुए मौसम का लुफ़्त उठाते हैं
हवाओं की भी आजकल फज़ाएँ रंगीन हैं
आसमाँ को पीतांबर पहनाए सवेरा रोज़ आता है
सौंधी सौंधी ठंडक मन को लुभाती है
हर ऋतु नए रंग लेकर आती है
हम सब को एक ही सीख देती है
ऋतुओं के रंगों की तरह जीवन के हर रंग को अपना लेना
सुख का दुख के बिना और ख़ुशी का ग़म के बिना कोई वज़ूद नहीं है
ज़िन्दगी जैसी भी मिले उसे अपनाकर जीने से ही आसान है नहीं तो सजा है ..
वन्दना सूद